उस ने भी ख़ुद को बे-कनार किया
जिस का साहिल ने इंतिज़ार किया
आइने में सुलग रहा था लहू
फिर भी हैरत का दिल शुमार किया
कोरा होने से पेशतर मैं ने
एक इक रंग इख़्तियार किया
मेरी दीवानगी भरोसा रख
मैं ने पानी को भी ग़ुबार किया
मैं कहीं भी पहुँच नहीं पाया
क्यूँकि साए को रहगुज़ार किया
तुम भी मसरूफ़ हो रहे हो 'रज़ा'
तुम ने भी इश्क़ इख़्तियार किया
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ग़ज़ल
उस ने भी ख़ुद को बे-कनार किया
नईम रज़ा भट्टी