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उस ने भी ख़ुद को बे-कनार किया | शाही शायरी
usne bhi KHud ko be-kanar kiya

ग़ज़ल

उस ने भी ख़ुद को बे-कनार किया

नईम रज़ा भट्टी

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उस ने भी ख़ुद को बे-कनार किया
जिस का साहिल ने इंतिज़ार किया

आइने में सुलग रहा था लहू
फिर भी हैरत का दिल शुमार किया

कोरा होने से पेशतर मैं ने
एक इक रंग इख़्तियार किया

मेरी दीवानगी भरोसा रख
मैं ने पानी को भी ग़ुबार किया

मैं कहीं भी पहुँच नहीं पाया
क्यूँकि साए को रहगुज़ार किया

तुम भी मसरूफ़ हो रहे हो 'रज़ा'
तुम ने भी इश्क़ इख़्तियार किया