उस नज़र की शराब पीता हूँ
बादा-ए-कामयाब पीता हूँ
पर्दा-दारी-ए-नज़्म-ए-कुन की ख़ैर
आज मैं बे-हिजाब पीता हूँ
झूम जाते हैं अर्श ओ कौसर ओ ख़ुल्द
झूम कर जब शराब पीता हूँ
रहमतें बे-हिसाब होती हैं
मैं जहाँ बे-हिसाब पीता हूँ
सादा, सादा-निगाहों के निसार
हल्की हल्की शराब पीता हूँ
उफ़ ये मेरा जलाल-ए-बादा-कशी
घोल कर आफ़्ताब पीता हूँ
ज़ब्त और ज़ब्त-ए-मुस्तक़िल 'शेरी'
ठंडी ठंडी शराब पीता हूँ
ग़ज़ल
उस नज़र की शराब पीता हूँ
शेरी भोपाली