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उस नज़र की शराब पीता हूँ | शाही शायरी
us nazar ki sharab pita hun

ग़ज़ल

उस नज़र की शराब पीता हूँ

शेरी भोपाली

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उस नज़र की शराब पीता हूँ
बादा-ए-कामयाब पीता हूँ

पर्दा-दारी-ए-नज़्म-ए-कुन की ख़ैर
आज मैं बे-हिजाब पीता हूँ

झूम जाते हैं अर्श ओ कौसर ओ ख़ुल्द
झूम कर जब शराब पीता हूँ

रहमतें बे-हिसाब होती हैं
मैं जहाँ बे-हिसाब पीता हूँ

सादा, सादा-निगाहों के निसार
हल्की हल्की शराब पीता हूँ

उफ़ ये मेरा जलाल-ए-बादा-कशी
घोल कर आफ़्ताब पीता हूँ

ज़ब्त और ज़ब्त-ए-मुस्तक़िल 'शेरी'
ठंडी ठंडी शराब पीता हूँ