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उस की ख़ुश्बू की चाप सुनते ही | शाही शायरी
uski KHushbu ki chap sunte hi

ग़ज़ल

उस की ख़ुश्बू की चाप सुनते ही

नोमान फ़ारूक़

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उस की ख़ुश्बू की चाप सुनते ही
फूल खिलने लगे थे बेले में

उस ने वा'दा किया है मिलने का
मुझ से आइंदगाँ के मेले में

आओ ढूँडें कहाँ गया सूरज
शाम के सुरमई झमेले में

उस से कहना कि लौट आए वो
बात करना मगर अकेले में

उस के छूते ही होश की नाव
बह गई ख़ुशबुओं के रेले में