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उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो | शाही शायरी
uski ek duniya hun main aur meri ek duniya hai wo

ग़ज़ल

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

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उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो
दश्त में तन्हा हूँ मैं और शहर में तन्हा है वो

मैं भी कैसा आइना हूँ आइना-दर-आइना
दूर तक चेहरा-ब-चेहरा बस नज़र आता है वो

उस की ख़ुश-बू से महक कर फूल बन जाता है दिल
मौसम-ए-गुल की तरह आता है वो जाता है वो

ज़िंदगी अपनी मुसलसल चाहतों का इक सफ़र
इस सफ़र में बार-हा मिल कर बिछड़ जाता है वो

ख़्वाब क्या है इक खंडर है ये खंडर कितना हसीं
इस खंडर में सैर करने के लिए आता है वो

मैं सरापा आरज़ू हूँ आरज़ू-ए-ना-तमाम
मुझ को हर मंज़िल से आगे की ख़बर देता है वो

हुस्न क्या है इक ग़ज़ल है 'अश्क' इक ताज़ा ग़ज़ल
जाम है मीना है वो साग़र है वो सहबा है वो