उस की आँखों में इक सवाल सा था
मेरे दिल में कोई मलाल सा था
धुल गया आँसुओं में सारा वजूद
इश्क़ में ये अजब कमाल सा था
जिस्म की डाल पर झुका था ख़्वाब
रूह सरशार दिल निहाल सा था
गुफ़्तुगू कर रही थी ख़ामोशी
हिज्र की राह में विसाल सा था
ख़्वाहिशें हर घड़ी उरूज पे थीं
वक़्त को हर घड़ी ज़वाल सा था
मैं भी थी आश्ना रिवायत से
उस को भी ज़ब्त में कमाल सा था
ख़्वाब-दर-ख़्वाब थीं मुलाक़ातें
दर्द-ए-दिल वज्ह-ए-इंदिमाल सा था
आइना बन गया है मेरे लिए
एक चेहरा कि बे-मिसाल सा था
ग़ज़ल
उस की आँखों में इक सवाल सा था
माह तलअत ज़ाहिदी