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उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे | शाही शायरी
uske qurb ke sare hi aasar lage

ग़ज़ल

उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे

ज़ेब ग़ौरी

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उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे
हवा में लहराते गेसू-ए-यार लगे

दिल भी क्या नैरंग-ए-सराब-ए-आरज़ू है
रौनक़ देखो तो कोई बाज़ार लगे

मैं घबरा कर तुझ को पुकारूँ तो ये फ़लक
आँगन बीच बहुत ऊँची दीवार लगे

इक बे-मा'नी मह्विय्यत सी है शब-ओ-रोज़
सोचो तो जो कुछ है सब बेकार लगे

मेरी अना उफ़्तादगी में भी क्या है 'ज़ेब'
कोई हाथ बढ़ाए तो तलवार लगे