उस के कूचे सती ग़ुबार उठा
कौन सा वाँ से ख़ाकसार उठा
अंदलीबो बसा लो अब सहरा
बाग़ से मौसम-ए-बहार उठा
हिचकियाँ ले गुलाबियाँ रोएँ
बज़्म से जब ये मय-गुसार उठा
अज़्म रुख़्सत हुआ जब ही उस का
मेरे दिल से वहीं क़रार उठा
नहीं जो क़द्र-ए-अश्क आलम से
मोतियों का मगर वक़ार उठा
शम्अ से सोज़ 'अमानी' पूछा तिरा
इक धुआँ उस के दिल से यार उठा
ग़ज़ल
उस के कूचे सती ग़ुबार उठा
ख़्वाजा मीर अमानी