EN اردو
उस के कूचे सती ग़ुबार उठा | शाही शायरी
uske kuche sati ghubar uTha

ग़ज़ल

उस के कूचे सती ग़ुबार उठा

ख़्वाजा मीर अमानी

;

उस के कूचे सती ग़ुबार उठा
कौन सा वाँ से ख़ाकसार उठा

अंदलीबो बसा लो अब सहरा
बाग़ से मौसम-ए-बहार उठा

हिचकियाँ ले गुलाबियाँ रोएँ
बज़्म से जब ये मय-गुसार उठा

अज़्म रुख़्सत हुआ जब ही उस का
मेरे दिल से वहीं क़रार उठा

नहीं जो क़द्र-ए-अश्क आलम से
मोतियों का मगर वक़ार उठा

शम्अ से सोज़ 'अमानी' पूछा तिरा
इक धुआँ उस के दिल से यार उठा