EN اردو
उस का नेज़ा था और मिरा सर था | शाही शायरी
us ka neza tha aur mera sar tha

ग़ज़ल

उस का नेज़ा था और मिरा सर था

सालेह नदीम

;

उस का नेज़ा था और मिरा सर था
और इक ख़ुश-गवार मंज़र था

कितनी आँखों से हो के गुज़रा वो
इक तमाशा जो सिर्फ़ पल भर था

दिल के रिश्तों की बात करते हो
एक शीशा था एक पत्थर था

उँगलियों के निशान बोल पड़े
कौन क़ातिल था किस का ख़ंजर था

हम उसूलों की बात करते रहे
और वो था कि अपनी ज़िद पर था