EN اردو
उस का लहजा उखड़ता जाता है | शाही शायरी
us ka lahja ukhaDta jata hai

ग़ज़ल

उस का लहजा उखड़ता जाता है

ख़्वाजा साजिद

;

उस का लहजा उखड़ता जाता है
फिर बिछड़ने का वक़्त आता है

उस का अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू अक्सर
मेरे लहजे में जगमगाता है

उस की साँसें जब आग देती हैं
मेरा चेहरा भी तिम्तिमाता है

प्यास जब एड़ियाँ रगड़ती है
चश्मा-ए-आब फूट जाता है

जब भी आता है फूल काजल के
मेरे काँधे पे टाँक जाता है

मैं चकोरों का हम-नवा हूँ मुझे
तू शब-ए-हिज्र से डराता है

देर तक मैं भी मैं नहीं रहता
जब वो मेरे क़रीब आता है