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उस का जवाब मिलना जहाँ में मुहाल है | शाही शायरी
us ka jawab milna jahan mein muhaal hai

ग़ज़ल

उस का जवाब मिलना जहाँ में मुहाल है

रियाज़त अली शाइक

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उस का जवाब मिलना जहाँ में मुहाल है
वो हुस्न-ए-ला-जवाब ख़ुद अपनी मिसाल है

ये और बात है कि न हों उन को इल्तिफ़ात
वो ख़ूब जानते हैं हमारा जो हाल है

तालिब कोई है एक करम की निगाह का
कीजे न रद किसी का ये पहला सवाल है

जितने हैं दूर उतने ही दिल के क़रीब हैं
हम को तो दौर-ए-हिज्र भी दौर-ए-विसाल है

हम बादा-कश तो मय को समझते हैं ज़िंदगी
ऐ वाइ'ज़-ए-बुज़ुर्ग तिरा क्या ख़याल है

दुनिया में बा-कमाल मिलेंगे गली गली
मैं बे-कमाल हूँ यही मेरा कमाल है

'शाएक' तिरी नज़र की जवानी न जाएगी
पिन्हाँ तिरी नज़र में किसी का जमाल है