उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
चाँद सूरज के उजालों का सवाली निकला
लोग समझा किए मौसम ही नहीं उड़ने का
उस की उज़्लत का सबब बे-पर-ओ-बाली निकला
फूल तो मिल गया ख़ुशबू न मगर हाथ लगी
उस को पाने का जुनूँ ख़ाम-ख़याली निकला
बारिश-ए-संग में भी आई दुआ होंटों पर
सब ने कम-तर जिसे जाना था वो आली निकला
बे-हदफ़ तीर चलाता रहा कोई 'गुलज़ार'
जब ज़रूरत पड़ी तरकश वहाँ ख़ाली निकला

ग़ज़ल
उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
गुलज़ार बुख़ारी