EN اردو
उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला | शाही शायरी
us ka chehra bhi chamak mein na misali nikla

ग़ज़ल

उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला

गुलज़ार बुख़ारी

;

उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला
चाँद सूरज के उजालों का सवाली निकला

लोग समझा किए मौसम ही नहीं उड़ने का
उस की उज़्लत का सबब बे-पर-ओ-बाली निकला

फूल तो मिल गया ख़ुशबू न मगर हाथ लगी
उस को पाने का जुनूँ ख़ाम-ख़याली निकला

बारिश-ए-संग में भी आई दुआ होंटों पर
सब ने कम-तर जिसे जाना था वो आली निकला

बे-हदफ़ तीर चलाता रहा कोई 'गुलज़ार'
जब ज़रूरत पड़ी तरकश वहाँ ख़ाली निकला