उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए
सुर्ख़ी-ए-लब भी गाल का वो तिल भी चाहिए
ये कारोबार-ए-शौक़ है बे-गार तो नहीं
इस कारोबार-ए-शौक़ का हासिल भी चाहिए
पानी और आग एक जगह चाहिएँ हमें
जो शाख़ गुल-ब-दस्त हो क़ातिल भी चाहिए
सब को ख़बर तो हो कि वो मेरा है बस मिरा
पहलू में यार बरसर-ए-महफ़िल भी चाहिए
पा कर चराग़-ए-दिल की हवस और बढ़ गई
मौसूफ़ को अब इक मह-ए-कामिल भी चाहिए
यूँ बे-कनार आरज़ूओं से वसूल क्या
ख़्वाहिश को एक सम्त भी साहिल भी चाहिए
ज़ोलीदा-मू ओ चाक-गरेबाँ सब अहल-ए-दिल
कोई तो इस क़बीले में आक़िल भी चाहिए
अपनी अलग शनाख़्त भी 'इमरान' हो ज़रूर
वो शख़्स अपनी ज़ीस्त में शामिल भी चाहिए
ग़ज़ल
उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए
इमरान-उल-हक़ चौहान