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उस जबीं पर जो बल पड़े शायद | शाही शायरी
us jabin par jo bal paDe shayad

ग़ज़ल

उस जबीं पर जो बल पड़े शायद

अलमास शबी

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उस जबीं पर जो बल पड़े शायद
ये कलेजा निकल पड़े शायद

साँस रुकने लगी है सीने में
तुम कहो तो ये चल पड़े शायद

ज़ब्त से लाल हो गईं आँखें
एक चश्मा उबल पड़े शायद

एक बुझता दिया मोहब्बत का
तेरे मिलने से जल पड़े शायद

बात अब जो तुम्हें बतानी है
दिल तुम्हारा उछल पड़े शायद

आँसुओं से धुली हुई आँखें
देख कर वो मचल पड़े शायद

बैठ कर बात क्यूँ नहीं करते
कोई सूरत निकल पड़े शायद

बे-रुख़ी से नहीं करो रुख़्सत
रास्ते में अजल पड़े शायद