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उस हसीं के ख़याल में रहना | शाही शायरी
us hasin ke KHayal mein rahna

ग़ज़ल

उस हसीं के ख़याल में रहना

अनवर मसूद

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उस हसीं के ख़याल में रहना
आलम-ए-बे-मिसाल में रहना

कब तलक रूह के परिंदे का
एक मिट्टी के जाल में रहना

अब यही नग़्मगी की नुदरत है
सुर में रहना न ताल में रहना

बे-असर कर गया है वाइज़ को
हर घड़ी क़ील-ओ-क़ाल में रहना

'अनवर' उस ने न मैं ने छोड़ा है
अपने अपने ख़याल में रहना