उस हसीं के ख़याल में रहना
आलम-ए-बे-मिसाल में रहना
कब तलक रूह के परिंदे का
एक मिट्टी के जाल में रहना
अब यही नग़्मगी की नुदरत है
सुर में रहना न ताल में रहना
बे-असर कर गया है वाइज़ को
हर घड़ी क़ील-ओ-क़ाल में रहना
'अनवर' उस ने न मैं ने छोड़ा है
अपने अपने ख़याल में रहना
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ग़ज़ल
उस हसीं के ख़याल में रहना
अनवर मसूद