उस गली तक सड़क रही होगी
राह अब भी वो तक रही होगी
रश्क बादल को भी हुआ होगा
धूप उस पर चमक रही होगी
मैं भी कब मैं हूँ ऐसे मौसम में
वो भी ख़ुद में बहक रही होगी
दश्त-ओ-सहरा की ओट में शायद
ये ज़मीं ज़ख़्म ढक रही होगी
वो बहुत अजनबी सा पेश आया
दिल में कोई कसक रही होगी
जो शजर सहन में लगा है 'अर्श'
उस पे चिड़िया चहक रही होगी
ग़ज़ल
उस गली तक सड़क रही होगी
विजय शर्मा अर्श