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उस बुत से जो मिलने की तदबीर नज़र आई | शाही शायरी
us but se jo milne ki tadbir nazar aai

ग़ज़ल

उस बुत से जो मिलने की तदबीर नज़र आई

रईस नारवी

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उस बुत से जो मिलने की तदबीर नज़र आई
बनती हुई कुछ अपनी तक़दीर नज़र आई

छुप छुप के ज़माने से क्यूँ अश्क-रवानी है
शायद कि मोहब्बत में तासीर नज़र आई

जीने का मज़ा क्या है जब मौत ही रूठी हो
जिस सम्त क़दम उठ्ठे ज़ंजीर नज़र आई

जब आलम-ए-वहशत में अपने को भुला बैठा
अंजाम-ए-मोहब्बत की तक़्सीर नज़र आई

पैमाना-ओ-मीना की सूरत में 'रईस' आख़िर
टूटी हुई तौबा की तस्वीर नज़र आई