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उस बहर में डूब क्यूँ न जाऊँ | शाही शायरी
us bahr mein Dub kyun na jaun

ग़ज़ल

उस बहर में डूब क्यूँ न जाऊँ

मंज़ूर आरिफ़

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उस बहर में डूब क्यूँ न जाऊँ
क्यूँ मौज न एक और उठाऊँ

मैं क़तरा-ए-आब से बना मौज
क्या बहर के और काम आऊँ

गर कोई सदफ़ क़ुबूल करे
मैं बन के गुहर उसे दिखाऊँ

शायद कोई लहर लेने आए
साहिल के क़रीब घर बनाऊँ

तू अपने ख़याल में मगन हो
मैं दूर से कोई गीत गाऊँ

अश्कों की झड़ी लगी हुई हो
भीगा हुआ तेरे पास आऊँ

इक उम्र की दास्तान-ए-गिर्या
दरिया के सिवा किसे सुनाऊँ