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उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था | शाही शायरी
uns apne mein kahin paya na begane mein tha

ग़ज़ल

उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

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उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था
क्या नशा है सारा आलम एक पैमाने में था

आह इतनी काविशें ये शोर-ओ-शर ये इज़्तिराब
एक चुटकी ख़ाक की दो पर ये परवाने में था

आप ही उस ने अनल-हक़ कह दिया इल्ज़ाम क्या
होश किस ने ले लिया था होश दीवाने में था

अल्लाह अल्लाह ख़ाक में मिलते ही ये पा-ए-समर
लो ख़ुदा की शान फल भी फूल भी दाने में था

शैख़ को जो पारसा कहता है उस को क्या कहूँ
मैं ने अपनी आँख से देखा वो मय-ख़ाने में था

'शाइर'-ए-नाज़ुक-तबीअत हूँ मिरा दिल कट गया
साक़िया लेना कि शायद बाल पैमाने में था