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उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं | शाही शायरी
unhin logon ki badaulat ye hasin achchhe hain

ग़ज़ल

उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं

मुज़्तर ख़ैराबादी

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उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
चाहने वाले इन अच्छों से कहीं अच्छे हैं

कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
इस बुरे हाल में भी हम तो यहीं अच्छे हैं

न कोई दाग़ न धब्बा न हरारत न तपिश
चाँद-सूरज से भी ये माह-जबीं अच्छे हैं

कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
यूँ तो पर्दे में सभी पर्दा-नशीं अच्छे हैं

तेरे घर आएँ तो ईमान को किस पर छोड़ें
हम तो का'बे ही में ऐ दुश्मन-ए-दीं अच्छे हैं

हैं मज़े हुस्न-ओ-मोहब्बत के इन्हीं को हासिल
आसमाँ वालों से ये अहल-ए-ज़मीं अच्छे हैं

एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
एक वो वो हैं कि जहाँ जाएँ वहीं अच्छे हैं

कूचा-ए-यार से महशर में बुलाता है ख़ुदा
कह दो 'मुज़्तर' कि न आएँगे यहीं अच्छे हैं