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उन से कहीं मिले हैं तो हम यूँ कभी मिले | शाही शायरी
un se kahin mile hain to hum yun kabhi mile

ग़ज़ल

उन से कहीं मिले हैं तो हम यूँ कभी मिले

ख़ुर्शीद अहमद जामी

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उन से कहीं मिले हैं तो हम यूँ कभी मिले
इक अजनबी से जैसे कोई अजनबी मिले

देखा तो लौह-ए-दिल पे तिरे नाम के सिवा
जलते हुए निशान-ए-सितम और भी मिले

कुछ दूर आओ मौत के हमराह भी चलें
मुमकिन है रास्ते में कहीं ज़िंदगी मिले

होंटों की मय-नज़र के तक़ाज़े बदन की आँच
अब क्या ज़रूर है कि वही रात भी मिले