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उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना | शाही शायरी
un se har haal mein tum silsila-jumban rakhna

ग़ज़ल

उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना

अफ़सर माहपुरी

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उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना
कुछ मदावा-ए-ग़म-ए-गर्दिश-ए-दौराँ रखना

अपने क़ाबू में ज़रा गेसू-ए-पेचाँ रखना
रास आता नहीं दुनिया को परेशाँ रखना

इस अँधेरे में भटक जाएँ न यादें उन की
अपनी मिज़्गाँ पे चराग़ों को फ़रोज़ाँ रखना

आज-कल बिकते हैं बाज़ार में इंसाँ के ज़मीर
तुम हो इंसान तो फिर वक़अ'त-ए-इंसाँ रखना

दाग़ दिल के हैं सलामत तो कोई बात नहीं
तीरगी लाख सही सुब्ह का इम्काँ रखना

मौसम-ए-शहर-ए-निगाराँ का कोई ठीक नहीं
गोशा-ए-दिल में कोई आतिश-ए-सोज़ाँ रखना

तुम से सच पूछो तो इतनी है गुज़ारिश मेरी
अपने 'अफ़सर' को ख़िज़ाँ में भी ग़ज़ल-ख़्वाँ रखना