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उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने | शाही शायरी
un nigahon ko ham-awaz kiya hai maine

ग़ज़ल

उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने

फ़व्वाद अहमद

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उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने
तब कहीं गीत का आग़ाज़ किया है मैं ने

ख़त्म हो ता-कि सितारों की इजारा-दारी
ख़ाक को माइल-ए-परवाज़ किया है मैं ने

आप को इक नई ख़िफ़्फ़त से बचाने के लिए
चाँदनी को नज़र-अंदाज़ किया है मैं ने

आसमानों की तरफ़ और नहीं देखूँगा
इक नए दौर का आग़ाज़ किया है मैं ने

रूठे लोगों को मनाने में मज़ा आता है
जान कर आप को नाराज़ किया है मैं ने

तुम मुझे छोड़ के इस तरह नहीं जा सकते
इस तअल्लुक़ पे बहुत नाज़ किया है मैं ने

वो जो सदियों से यहाँ बंद पड़ा था देखो
शाइरी का वही दर बाज़ किया है मैं ने

सुन के मबहूत हुई जाती है दुनिया सारी
शेर लिक्खे हैं कि एजाज़ किया है मैं ने

इश्क़ में नाम कमाना कोई आसान न था
सारे अहबाब को नाराज़ किया है मैं ने

सिर्फ़ लोगों को बताने से तसल्ली न हुई
चाँद तारों को भी हमराज़ किया है मैं ने

और भी होंगे कई चाहने वाले लेकिन
आप के नाम को मुम्ताज़ किया है मैं ने

आसमानों से परे करता है अब जा के शिकार
ताइर-ए-दिल को वो शहबाज़ किया है मैं ने

शाइरों से जो तिरे बाद कभी हो न सका
काम वो हाफ़िज़-ए-शीराज़ किया है मैं ने