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उन को है ए'तिदाल मुझे इंतिहा पसंद | शाही शायरी
un ko hai etidal mujhe intiha pasand

ग़ज़ल

उन को है ए'तिदाल मुझे इंतिहा पसंद

सत्यपाल जाँबाज़

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उन को है ए'तिदाल मुझे इंतिहा पसंद
उन की जुदा पसंद है मेरी जुदा पसंद

जौर-ओ-जफ़ा पसंद है शर्म-ओ-हया पसंद
काफ़िर अदा की है मुझे इक इक अदा पसंद

उन का मिज़ाज और है मेरा मज़ाक़ और
इन को जफ़ा पसंद है मुझ को वफ़ा पसंद

क्या ख़ूब है ये वक़्त की रफ़्तार देखिए
करते हैं मय-कदे को भी अब पारसा पसंद

रखते हैं दो-जहाँ में वही ज़िंदगी का हक़
बढ़ कर हयात से भी है जिन को क़ज़ा पसंद

मंज़िल से दूर जादा-ए-मंज़िल से दूर है
किस बात पर करें तुझे ऐ रहनुमा पसंद

'जाँबाज़' क्यूँ अयाँ न हों गुल-कारियाँ तिरी
मुश्किल ज़मीं है जब तुझे ऐ ख़ुश-नवा पसंद