EN اردو
उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई | शाही शायरी
un ko dekha to tabiat mein rawani aai

ग़ज़ल

उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई

सरदार सोज़

;

उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई
दिल के उजड़े हुए गुलशन पे जवानी आई

प्यास क्या उस की बुझाएँगे कोई आरिज़-ओ-लब
लब-ए-दरिया न जिसे प्यास बुझानी आई

गर्मी-ए-रंज-ओ-अलम ही में बसर की हम ने
ज़िंदगी में तो कोई रुत न सुहानी आई

उस का उन्वान तिरा नाम ही रक्खा हम ने
भूली-बिसरी जो कोई याद कहानी आई

हम मोहब्बत का भी मीनार बना सकते थे
हम को नफ़रत की न दीवार गिरानी आई

देख कर उस गुल-ए-शादाब को इक महफ़िल में
बा'द मुद्दत के फिर इक याद पुरानी आई

आरज़ू दिल को थी ऐ 'सोज़' ग़ज़ल-ख़्वानी की
रास आई तो हमें मर्सिया-ख़्वानी आई