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उन आँखों में हम ने हया देख ली है | शाही शायरी
un aankhon mein humne haya dekh li hai

ग़ज़ल

उन आँखों में हम ने हया देख ली है

शांति लाल मल्होत्रा

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उन आँखों में हम ने हया देख ली है
निराली सी तर्ज़-ए-जफ़ा देख ली है

तुम्हारे नहीं बस में कुछ ऐ तबीबो
दवा हम ने सब्र-आज़मा देख ली है

न आएगा कोई नज़र में हसीं अब
तिरे हुस्न की इंतिहा देख ली है

करूँ नाज़ क़िस्मत पे जितना भी कम है
कनखियों की तेरी अदा देख ली है

ख़िज़ाँ में क़फ़स से मिली क्या रिहाई
ख़ताओं की सारी सज़ा देख ली है

न सानी मिला कोई अपने चमन का
ज़माने की सारी फ़ज़ा देख ली है

मसर्रत के आलम में गुम-सुम है 'शादाँ'
तिरी रहगुज़र उस ने क्या देख ली है