उन आँखों को नज़र क्या आ गया है
मिज़ाज-ए-आरज़ू बदला हुआ है
न जाने हार है या जीत क्या है
ग़मों पर मुस्कुराना आ गया है
मिरी हालत पे उन का मुस्कुराना
जवाब-ए-ना-मुरादी आ गया है
नहीं इक मैं ही नाकाम-ए-मोहब्बत
यही पहले भी अक्सर हो चुका है
सबा की रौ न ग़ुंचों का तबस्सुम
चमन वालो कहो क्या हो गया है
शब-ए-ग़म सहमी सहमी याद उन की
अंधेरे में दिया सा जल रहा है
नहीं मिलता सुराग़-ए-मंज़िल-ए-शौक़
मोहब्बत से भी जी घबरा गया है
ग़ज़ल
उन आँखों को नज़र क्या आ गया है
एहतिशाम हुसैन