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उम्र गुज़री है कामरानी से | शाही शायरी
umr guzri hai kaamrani se

ग़ज़ल

उम्र गुज़री है कामरानी से

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

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उम्र गुज़री है कामरानी से
कोई शिकवा नहीं जवानी से

मिस्ल-ए-आदम है बे-घरी अपनी
कौन डरता है बे-मकानी से

यूँ मुसलसल अज़ाब झेला है
अश्क लगने लगे हैं पानी से

हम ही किरदार थे कहानी के
हम ही बाहर हुए कहानी से

सच छुपाना मुहाल है साहब
झूट से या कि लन-तरानी से

क्या वो परियाँ क़मर-असीर हुईं
सुनते आए थे हम जो नानी से

ज़ुल्मतों में भी हंस के खुल जाना
उस ने सीखा है रात-रानी से

बाँझ आँखें हुईं मगर 'ज़ाकिर'
ख़्वाब आते रहे रवानी से