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उम्र-भर सीने में इक दर्द दबाए रक्खा | शाही शायरी
umr-bhar sine mein ek dard dabae rakkha

ग़ज़ल

उम्र-भर सीने में इक दर्द दबाए रक्खा

अक्स समस्तीपूरी

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उम्र-भर सीने में इक दर्द दबाए रक्खा
एक बे-नाम से रिश्ते को निभाए रक्खा

था मुझे वहम-ओ-गुमाँ की वो फ़क़त मेरी है
और उस ने भी भरम मेरा बनाए रक्खा

आँधियाँ शर्म से हो जाए न पानी पानी
सर यही सोच के पेड़ों ने झुकाए रक्खा

वैसे हर बात से रक्खा उसे वाक़िफ़ हम ने
लेकिन अफ़्साना-ए-उल्फ़त को छुपाए रक्खा

एक रिश्ता जिसे मैं दे न सका कोई नाम
एक रिश्ता जिसे ता-उम्र निभाए रखा

कूज़ा-गर तुझ को बनाना ही नहीं था जब कुछ
किस लिए चाक पे ता-उम्र चढ़ाए रक्खा