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उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ | शाही शायरी
umr aaKHir hai junun kar lun bahaaran phir kahan

ग़ज़ल

उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

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उम्र आख़िर है जुनूँ कर लूँ बहाराँ फिर कहाँ
हाथ मत पकड़ो मिरा यारो गिरेबाँ फिर कहाँ

चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
दे ले साक़ी हम को मय ये अब्र-ए-बाराँ फिर कहाँ

यार जब पहने जवाहिर कर दे ऐ दिल जी निसार
जल चुक ऐ परवाने ये रंगीं चराग़ाँ फिर कहाँ

इस तरह सय्याद कब आज़ाद छोड़ेगा तुम्हें
बुलबुलो धूमें मचा लो ये गुलिस्ताँ फिर कहाँ

है बहिश्तों में 'यक़ीं' सब कुछ व-लेकिन दर्द नईं
भर के दिल रो लीजिए ये चश्म-ए-गिर्यां फिर कहाँ