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उमीदें मिट गईं अब हम-नफ़स क्या | शाही शायरी
umiden miT gain ab ham-nafas kya

ग़ज़ल

उमीदें मिट गईं अब हम-नफ़स क्या

सफ़िया शमीम

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उमीदें मिट गईं अब हम-नफ़स क्या
नशेमन की ख़ुशी रंज-ए-क़फ़स क्या

बसर काँटों में हो जब ज़िंदगानी
बहार-ए-ख़ंदा-ए-गुल यक-नफ़स क्या

मिरी दीवानगी क्यूँ बढ़ रही है
बहार आई चमन में हम-नफ़स क्या

न हो जब रंग-ए-आज़ादी चमन में
तो फिर अंदेशा-ए-क़ैद-ए-क़फ़स क्या

बहार-ए-नौ की फिर है आमद आमद
चमन उजड़ा कोई फिर हम-नफ़स क्या