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उड़ना तो बहुत उड़ना अफ़्लाक पे जा रहना | शाही शायरी
uDna to bahut uDna aflak pe ja rahna

ग़ज़ल

उड़ना तो बहुत उड़ना अफ़्लाक पे जा रहना

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

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उड़ना तो बहुत उड़ना अफ़्लाक पे जा रहना
हम ने कहाँ सीखा है ज़ेर-ए-कफ़-ए-पा रहना

आँखों को खुला रखना किस के लिए आसाँ है
याँ किस को गवारा है आँखों का खुला रहना

जो मौजा-ए-बाद आया ज़र्दी का पयम्बर था
ए'जाज़ से क्या कम है पेड़ों का हरा रहना

बाग़ों में ख़िरामाँ थी शहरों में परेशाँ है
ख़ुशबू को न रास आया पाबंद-ए-हवा रहना

मैं ज़ात के सहरा में ता-उम्र न भटकूँगा
ऐ शहर के दरवाज़ो मेरे लिए वा रहना