उबलते पानियों में हूँ कहाँ उबाल की तरह
मैं आज भी हूँ तह-नशीं गुज़िश्ता साल की तरह
दिलों में सब के चुभ रही है इक सवाल की तरह
तिरी निगाह-ए-यास भी है मेरे हाल की तरह
करूँगा तुझ से गुफ़्तुगू ज़रा ठहर निमट तो लूँ
खड़ा है कोई बीच में अभी सवाल की तरह
न पूछ मुझ से हाल दिल कि इन दिनों है ज़िंदगी
किसी उरूज-ए-दीदा की शब-ए-ज़वाल की तरह
वो एक याद जो अभी है दाग़-ए-दिल बनी हुई
फिसल न जाए ज़ेहन से किसी ख़याल की तरह
न पूछ 'क़ैसर'-ए-हज़ीं अजीब सी वो चीज़ है
बिछी हुई है शहर में जो एक जाल की तरह
ग़ज़ल
उबलते पानियों में हूँ कहाँ उबाल की तरह
क़ैशर शमीम