टूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटे
कि जिसे देख के हर देखने वाला टूटे
तू उसे किस के भरोसे पे नहीं कात रही??
चर्ख़ को देखने वाली!! तिरा चर्ख़ा टूटे
अपने बिखरे हुए टुकड़ों को समेटे कब तक??
एक इंसान की ख़ातिर कोई कितना टूटे
कोई टुकड़ा तिरी आँखों में न चुभ जाए कहीं
दूर हो जा कि मिरे ख़्वाब का शीशा टूटे
मैं किसी और को सोचूँ तो मुझे होश आए
मैं किसी और को देखूँ तो ये नश्शा टूटे
रंज होता है तो ऐसा कि बताए न बने
जब किसी अपने के बाइ'स कोई अपना टूटे
पास बैठे हुए यारों को ख़बर तक न हुई
हम किसी बात पे इस दर्जा अनोखा टूटे
इतनी जल्दी तो सँभलने की तवक़्क़ो' न करो!!
वक़्त ही कितना हुआ है मिरा सपना टूटे
दाद की भीक न माँग!! ऐ मिरे अच्छे शाएर!!
जा तुझे मेरी दुआ है तिरा कासा टूटे
वर्ना कब तक लिए फिरता रहूँ उस को 'जव्वाद'
कोई सूरत हो कि उम्मीद से रिश्ता टूटे
ग़ज़ल
टूटने पर कोई आए तो फिर ऐसा टूटे
जव्वाद शैख़