टूट जाता है सितारों का भरम रात गए
जगमगाते हैं तिरे नक़्श-ए-क़दम रात गए
क्या बताएँ जो गुज़रती है हमारे दिल पर
याद आते हैं जब अपनों के सितम रात गए
ग़र्क़ हो जाती है जब नींद में सारी दुनिया
जाग उठते हैं अदीबों के क़लम रात गए
रोज़ आते हैं सदा दे के चले जाते हैं
दिल के दरवाज़े पे कुछ अहल-ए-करम रात गए
रोक लेती है तिरी याद सहारा बन कर
डगमगाते हैं अगर मेरे क़दम रात गए
जिन की उम्मीद में हम दिन को जिया करते हैं
टूट जाते हैं वही क़ौल-ओ-क़सम रात गए
जिन की क़िस्मत में नहीं दिन का उजाला 'मंसूर'
उन चराग़ों में जला करते हैं हम रात गए
ग़ज़ल
टूट जाता है सितारों का भरम रात गए
मंसूर उस्मानी