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तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख | शाही शायरी
tufan samundar ke na dariya ke bhanwar dekh

ग़ज़ल

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

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तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख
साहिल की तमन्ना है तो मौजों का सफ़र देख

ख़ुशियों का ख़ज़ीना तह-ए-दामान-ए-अलम है
गुज़रे शब-ए-तारीक तो फिर नूर-ए-सहर देख

उड़ जाना फ़लक तक कोई मुश्किल नहीं लेकिन
सूरज के तमाज़त से झुलस जाएँ न पर देख

मेराज है मेराज तिरे ज़ौक़-ए-नज़र की
हर मंज़र-ए-दिल-कश यही कहता है उधर देख

चश्मे हैं न दरिया न समुंदर है न झीलें
है प्यास कि आलम हैं सराबों का सफ़र देख

टकराएँ तो सहराओं में भी आग लगा दें
पोशीदा रग-ए-संग में हैं कितने शरर देख

तू ने तो मिरी सम्त से मुँह मोड़ लिया है
अब होती है किस तरह मिरी उम्र बसर देख

तू अपनी हिफ़ाज़त की दुआ माँग चुका है
अब बैठ के ख़ल्वत में दुआओं का असर देख

इस कार-गह-ए-दहर में ऐ रहमत-ए-आलम
इक मैं ही नहीं सब हैं तिरे दस्त-ए-निगर देख

क्या तह में समुंदर की 'गुहर' ढूँड रहा है
मेरी सदफ़-ए-चश्म में अश्कों के 'गुहर' देख