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तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में | शाही शायरी
tu subh-dam na naha be-hijab dariya mein

ग़ज़ल

तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में
पड़ेगा शोर कि है आफ़्ताब दरिया में

चलो शराब पिएँ बैठ कर किनारे आज
कि होवे रश्क से माही कबाब दरिया में

तुम्हारे मुँह की सफ़ाई ओ आब-दारी देख
बहा है शर्म से मोती हो आब दरिया में

मैं इस तरह से हूँ मेहमाँ सारा-ए-दुनिया में
कि जिस तरह से है कोई हुबाब दरिया में

जहाँ के बहर में हर मौज बूझ सैल-ए-फ़ना
बना न घर को तू ख़ाना-ख़राब दुनिया में

कभू जो आलम-ए-मस्ती में तुम ने की थी निगाह
बजाए आब बहे है शराब दरिया में

मैं आब-ए-चश्म में हूँ ग़र्क़ मुझ को नींद कहाँ
कहीं किसू को भी आया है ख़्वाब दरिया में

अगर है इल्म जो तुझ को अमल के दर पे हो
वगर्ना शैख़ डुबा दे किताब दरिया में

सनम की ज़ुल्फ़ की लहरों के रश्क से 'हातिम'
नहीं ये मौज ये है पेच-ओ-ताब दरिया में