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तू ने जब भी आँख मिलाई | शाही शायरी
tu ne jab bhi aankh milai

ग़ज़ल

तू ने जब भी आँख मिलाई

मजीद लाहौरी

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तू ने जब भी आँख मिलाई
दीदा-ओ-दिल पर आफ़त आई

ये सन्नाटा ये तन्हाई
लेकिन तेरी याद तो आई

दैर-ओ-हरम में जा बैठे हैं
दुनिया जिन को रास न आई

टूट गईं सारी ज़ंजीरें
ज़ुल्फ़ तिरे रुख़ पर लहराई

मंज़िल दूर थी लेकिन हम ने
एक क़दम में ठोकर खाई

तुझ को मुबारक फूल और कलियाँ
मेरा हिस्सा आबला-पाई

छानी हम ने नगरी नगरी
सहरा सहरा ख़ाक उड़ाई

कौन 'मजीद' इस भेद को जाने
क्या शय खोई क्या शय पाई