तू नहीं है तो ज़िंदगी है उदास
हर तरफ़ है मुहीत ज़ुल्मत-ओ-यास
वो मुसाफ़िर क़रीब-ए-मंज़िल है
खो चुका है जो अपने होश-ओ-हवास
उतरे उतरे मलूल चेहरों पर
बिखरा बिखरा सा रंग-ए-आलम-ए-यास
छेड़ दो फिर कोई तराना-ए-ग़म
टूट जाए न ज़िंदगी की आस
मौत भी तो उसे नहीं आती
हो चुका है जो ज़िंदगी से उदास
ख़ामोशी का सबब कुछ और ही है
वर्ना दिल में न ख़ौफ़ है न हिरास
अब ये 'परवेज़' दिल का आलम है
कोई उम्मीद है न कोई आस

ग़ज़ल
तू नहीं है तो ज़िंदगी है उदास
सय्यद प्रवेज़