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तू न आया तिरी यादों की हवा तो आई | शाही शायरी
tu na aaya teri yaadon ki hawa to aai

ग़ज़ल

तू न आया तिरी यादों की हवा तो आई

शकेब बनारसी

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तू न आया तिरी यादों की हवा तो आई
दिल के तपते हुए सहरा पे घटा तो आई

मैं तो समझा था कि अब कोई न अपना होगा
तेरे कूचे से मगर हो के सबा तो आई

मेरे मरने की सही जाँ से गुज़रने की सही
मेरे हक़ में तेरे होंटों पे दुआ तो आई

दिल-दही का जो सलीक़ा नहीं आया न सही
आप को दिल के दुखाने की अदा तो आई

हो गया आप-ही-आप आज मुदावा अपना
गर मसीहा नहीं आया तो क़ज़ा तो आई

मुझ को शिकवा नहीं अब क़ासिम-ए-क़िस्मत से 'शकेब'
कुछ न आया मिरे हिस्से में वफ़ा तो आई