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तू जो आबाद है ऐ दोस्त मिरे दिल के क़रीब | शाही शायरी
tu jo aabaad hai ai dost mere dil ke qarib

ग़ज़ल

तू जो आबाद है ऐ दोस्त मिरे दिल के क़रीब

अब्दुल मलिक सोज़

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तू जो आबाद है ऐ दोस्त मिरे दिल के क़रीब
मेरी मंज़िल भी है गोया तिरी मंज़िल के क़रीब

डूब जाते हैं तलातुम में सफ़ीने अक्सर
डूबता और ही कुछ बात है साहिल के क़रीब

उठ गया दूरी-ए-मंज़िल की थकन का एहसास
राह कुछ और कठिन हो गई मंज़िल के क़रीब

मौत हर बार रिहाई में मिरी माने' हुई
ले गई ज़ीस्त तो अक्सर मुझे क़ातिल के क़रीब

'सोज़' ख़ुद उन की ख़लिश रश्क-ए-मसीहाई है
ज़ख़्म ऐसे भी शगुफ़्ता हैं मिरे दिल के क़रीब