EN اردو
तू है कि चीसताँ की इबारत है तह-ब-तह | शाही शायरी
tu hai ki chistan ki ibarat hai tah-ba-tah

ग़ज़ल

तू है कि चीसताँ की इबारत है तह-ब-तह

ख़ुर्शीद रिज़वी

;

तू है कि चीसताँ की इबारत है तह-ब-तह
दिल है कि संग-बस्ता-ए-हैरत है तह-ब-तह

जो आँख देखने में ख़राबा दिखाई दे
समझो कि इस में कोई अमानत है तह-ब-तह

बहर-अना हूँ मेरी तहों में उतर के देख
ख़्वाबीदा मुझ में वक़्त की मय्यत है तह-ब-तह

वो चश्म-ए-सुर्मा-सा कि जिसे बे-ज़बाँ कहें
उस की ख़मोशियों में इशारत है तह-ब-तह

फ़ुर्सत कहाँ कि ग़ैर से हम दुश्मनी करें
अपना वजूद एक मुसीबत है तह-ब-तह

शायद कोई गया हो ज़माने से कामगार
अपनी तो ज़ीस्त कान-ए-नदामत है तह-ब-तह