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तू भी वफ़ा के रूप में अब ढल के देख ले | शाही शायरी
tu bhi wafa ke rup mein ab Dhal ke dekh le

ग़ज़ल

तू भी वफ़ा के रूप में अब ढल के देख ले

अज़हर जावेद

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तू भी वफ़ा के रूप में अब ढल के देख ले
इस आग में हमारी तरह जल के देख ले

दश्त-ए-तलब में प्यार के ग़ुंचे भी खिल उठें
कुछ रोज़ मेरे साथ कभी चल के देख ले

मुमकिन है कोई सुब्ह-ए-तमन्ना हो इस के ब'अद
ऐ हसरतों की रात ज़रा ढल के देख ले

कुछ गर्द-बाद ग़म के उमीदों के कुछ सराब
मंज़र हमारे दिल में कोई थल के देख ले

रखते हैं हम भी जुरअत-ए-इज़हार-ए-ज़िंदगी
महरूमियों का ख़ौफ़ अगर टल के देख ले

इस दिल में हो चुका है बहुत वलवलों का ख़ून
ऐ जज़्ब-ए-शौक़ तू भी यहाँ पल के देख ले

'अज़हर' तिरा नसीब है ये शबनमी बहार
चेहरे पे तू भी रंग-ए-ख़िज़ाँ मल के देख ले