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तू आग रखना कि आब रखना | शाही शायरी
tu aag rakhna ki aab rakhna

ग़ज़ल

तू आग रखना कि आब रखना

सुभाष पाठक ज़िया

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तू आग रखना कि आब रखना
है शर्त इतनी हिसाब रखना

ज़बान का कुछ ख़याल रखकर
बयान को कामयाब रखना

क़रीब आओ कि चाहता हूँ
हथेली पर माहताब रखना

अगर तमाज़त को सह सको तुम
तो हसरत-ए-आफ़्ताब रखना

जो कहनी हो बात ख़ार जैसी
तो लहजा अपना गुलाब रखना

'ज़िया' किसी से सवाल पूछो
तो ज़ेहन में तुम जवाब रखना