तुर्फ़ा माजून है हमारा यार
ग़ैर से हम-कनार हम से कनार
हम कहें बाग़ चल तो हाँ न कहे
ग़ैर के साथ रोज़ सैर ओ शिकार
हम को मज्लिस में देख चुप हो जाए
ग़ैर से टोक कर करे गुफ़्तार
हम को देखे कहीं तो आँखें चुराए
ग़ैर को देख कर आप से हो दो-चार
ग़ैर से साफ़ सीना हो के मिले
हम से दिल में रखे हमेशा ग़ुबार
ग़ैर जौर-ओ-जफ़ा ओ बे-मेहरी
हम से इस का नहीं है और शिआर
ग़ैर की बात सुन के ख़ुश होवे
हम से हर बात में करे तकरार
मिन्नत-ओ-इज्ज़-ओ-इंकिसार-ओ-नियाज़
करते करते हुए बहुत लाचार
वो किसी तरह आश्ना ही नहीं
इम्तिहाँ हम किया है चंदें यार
ज़रा भी कान धर कभू न सुने
दर्द-ए-दिल हम अगर करें इज़हार
जान और माल दे चुकें उस को
दिल से जाने हमें अगर ग़म-ख़्वार
जो रहे हम से रोज़ बेगाना
सोहबत ऐसे से कैसे हो बर्रार
कर इलाही तू मेहरबाँ उस को
जिस के पीछे हुए हैं ज़ार-ओ-निज़ार
ग़रज़ अब शिकवा कब तलक कीजे
चुप ही रहना है 'हातिम' अब दरकार
ग़ज़ल
तुर्फ़ा माजून है हमारा यार
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम