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तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल | शाही शायरी
tumhein KHabar bhi na mili aur hum shikasta-haal

ग़ज़ल

तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल

वज़ीर आग़ा

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तुम्हें ख़बर भी न मिली और हम शिकस्ता-हाल
तुम्हारे क़दमों की आँधी में हो गए पामाल

तिरे बदन की महक ने सुला दिया था मगर
हवा का अंधा मुसाफ़िर चला अनोखी चाल

वो एक नूर का सैलाब था कि उसी का सफ़र
वो एक नुक़्ता-ए-मौहूम था कि ये बद-हाल

अजीब रंग में वारिद हुई ख़िज़ाँ अब के
दमकते होंट सुलगती नज़र दहकते गाल

तिरे करम की तो हर सू महकती बरखा थी
हमीं थे जिन को हुआ भीगा पैरहन भी वबाल