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तुम्हें ख़बर भी है ये तुम ने किस से क्या माँगा | शाही शायरी
tumhein KHabar bhi hai ye tumne kis se kya manga

ग़ज़ल

तुम्हें ख़बर भी है ये तुम ने किस से क्या माँगा

ग़नी एजाज़

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तुम्हें ख़बर भी है ये तुम ने किस से क्या माँगा
भँवर में डूबने वालों से आसरा माँगा

सुने जो मेरे अज़ाएम तो आज़माने को
हवा से बर्क़ ने घर का मिरे पता माँगा

ख़ुद अपनी राह बनाता गया पहाड़ों में
कभी कहाँ किसी दरिया ने रास्ता माँगा

जो आप अपने अंधेरों से बद-हवास हुई
शब-ए-सियाह ने घबरा के इक दिया माँगा

कहीं भी हो कोई नेकी बराए नेकी हो
वहीं पे हो गई ज़ाएअ' अगर सिला माँगा

ख़ुदा की देन के मोहताज-ए-बंदगान-ए-ख़ुदा
ये क्या कि माँगने वालों से जा-ब-जा माँगा

हमें जो इश्क़ में होना था सुर्ख़-रू 'एजाज़'
तो हम ने जान-ए-हज़ीं क़ल्ब-ए-मुब्तला माँगा