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तुम्हारी याद तारी हो रही है | शाही शायरी
tumhaari yaad tari ho rahi hai

ग़ज़ल

तुम्हारी याद तारी हो रही है

आरिफ़ इशतियाक़

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तुम्हारी याद तारी हो रही है
बड़ी ही यादगारी हो रही है

तुम्हें तो लौट कर आना नहीं है
मुझे तो इंतिज़ारी हो रही है

मिरे अंदर कोई लड़ मर रहा है
बड़ी तख़रीब-कारी हो रही है

तिरे कूचे में तो साज़िश हुई थी
वहाँ क्यूँ आह-ओ-ज़ारी हो रही है

तिरे अंदर कहाँ सब्ज़ा उगेगा
ख़िज़ाँ में काश्त-कारी हो रही है

मुझी पे डाल दे सारा ख़सारा
तुझे क्यूँ शर्मसारी हो रही है

ये दुनिया की मोहब्बत और ये दुनिया
तुम्हारी थी तुम्हारी हो रही है

दर-ए-अफ़्लाक से क्या झाँकता है
ज़मीं पे मारा-मारी हो रही है

ज़मीं पर एक मुल्क ऐसा है जिस में
ग़ज़ब की दीन-दारी हो रही है