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तुम्हारे साथ ये झूटे फ़क़ीर रहते हैं | शाही शायरी
tumhaare sath ye jhuTe faqir rahte hain

ग़ज़ल

तुम्हारे साथ ये झूटे फ़क़ीर रहते हैं

हसनैन आक़िब

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तुम्हारे साथ ये झूटे फ़क़ीर रहते हैं
हमारे साथ तो मुनकिर-नकीर रहते हैं

हमारी कम-नज़री से जो हो गए महदूद
उन्ही मज़ारों में रौशन ज़मीर रहते हैं

रिवायतों के तअस्सुर का अपना जादू है
कहीं कहीं मिरी ग़ज़लों में 'मीर' रहते हैं

बहुत उदास हैं दीवारें ऊँचे महलों की
ये वो खंडर हैं कि जिन में अमीर रहते हैं

हर इक फ़साद ज़रूरत है अब सियासत की
हर इक घोटाले के पीछे वज़ीर रहते हैं