तुम्हारे नाम कर बैठे दिल-ओ-जाँ की ख़ुशी साहब
हसीन-ओ-दिल-नशीं लगती है अब तो ज़िंदगी साहब
मिलन की साअ'तों में जाँ-फ़िज़ा ख़ुश्बू अनोखी है
हमा-दम रक़्स करती है अजब इक बे-ख़ुदी साहब
तर-ओ-ताज़ा हुई मिट्टी मिरी बस एक लम्हे में
हुनर अब आज़माओ और करो कूज़ा-गरी साहब
तुम्हारे एक हर्फ़-ए-ख़ुश-नुमा पर वार दूँ ग़ज़लें
सुख़न की जान हो तुम और क़लम की रौशनी साहब
सितारे गीत गाते हैं समुंदर रक़्स करता है
मुकम्मल हो गए हम तुम नहीं कोई कमी साहब
यही सच है कि हम तुम मुख़्तलिफ़ हैं और लोगों से
ज़माने में मिसाली है हमारी हम-रही साहब
कि जब भी हाथ मेरे बारगाह-ए-रब में उठते हैं
तशक्कुर लब पे होता है निगाहों में नमी साहब
ग़ज़ल
तुम्हारे नाम कर बैठे दिल-ओ-जाँ की ख़ुशी साहब
शुमाइला बहज़ाद