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तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा | शाही शायरी
tumhaare ishq pe dil ko jo man tha na raha

ग़ज़ल

तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा

हुमैरा राहत

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तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा
सितारा एक सर-ए-आसमान था न रहा

वो और थे कि जो ना-ख़ुश थे दो जहाँ ले कर
हमारे पास तो बस इक जहान था न रहा

तू अपनी फ़त्ह का ऐलान कर मैं हार गई
वो हौसला कि मुझे जिस पे मान था न रहा

वही कहानी है किरदार भी वही हैं मगर
जो एक नाम सर-ए-दास्तान था न रहा

सदाएँ दोगे पलट कर कभी तो देखोगे
हमारे दिल में ये मुबहम गुमान था न रहा